आज भी क्‍यों परेशान कर रहा है टीबी?

आज भी क्‍यों परेशान कर रहा है टीबी?

सेहतराग टीम

कुछ साल पहले जब देश को पोलियो मुक्त घोषित किया गया तो सभी को लगा कि अब टीबी या ट्यूबरक्यूलोसिस का खात्‍मा भी ज्यादा दूर नहीं है क्योंकि पोलियो की तरह केंद्रीय सरकार ने टीबी के उन्मूलन के लिए भी राष्ट्रीय अभियान छेड़ रखा है और इसकी दवा मुफ्त में मरीजों को उपलब्‍ध कराई जाती है। टीबी उन्मूलन के लिए चलाए जा रहे अभियान को इस तरह डिजाइन किया गया है कि इसमें मरीजों नहीं बल्कि सरकारी-गैर सरकारी स्वास्‍थ्यकर्मियों के हाथों में सीधे दवा खिलाने की जिम्‍मेदारी है। माना गया था कि इससे टीबी को इस देश से मिटाना संभव हो पाएगा क्योंकि टीबी की दवा लगातार कई महीने खानी होती है और अगर इसे मरीजों पर छोड़ दिया जाए तो एक बार बीमारी के लक्षण खत्म होते ही मरीज दवा भी छोड़ देता है जबकि टीबी के उन्मूलन के लिए जरूरी है कि लक्षण खत्‍म होने के बाद भी महीनों तक दवा खाई जाए।

अकेले भारत में दुनिया के 27 फीसदी नए मरीज

मगर अब विश्व स्वास्‍थ्य संगठन ने दावा किया है कि पूरी दुनिया में टीबी के जितने नए रोगी मिले हैं उसमें से 27 फीसदी अकेले भारत में पाए गए हैं। यानी देश में टीबी नए सिरे से उभर गया है। टीबी आज भी देश का सबसे संक्रामक रोग बना हुआ है। भारत में इतनी बड़ी संख्या में नए मामले सामने आने के कारण भी पूरी दुनिया में टीबी के नए मरीजों की संख्या में भी जोरदार उछाल आया है। विश्व स्वास्‍थ्य संगठन के अनुसार दुनिया में नए मरीजों की संख्या 96 लाख से बढ़कर एक करोड़ चार लाख हो गई है जिसमें से 2.5 फीसदी मामलों में टीबी की दो सबसे अहम दवाएं रीफेमपीसीन और आईसोनियाजिड बेअसर हो चुकी हैं।

बैक्‍टीरिया पर बेअसर होती दवाएं

पूरी दुनिया में टीबी की एक से अधिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर चुके टीबी बैक्टीरिया के 45 फीसदी मामले सिर्फ भारत, चीन और रूस में पाए गए हैं। भारत के मामले में यह भी पाया गया है कि भले ही टीबी पूरी तरह ठीक होने वाली बीमारी हो मगर इसका इलाज आज भी सिर्फ 59 फीसदी मरीजों तक ही पहुंच पाया है यानी 41 फीसदी मरीजों को टीबी का सही इलाज मिल ही नहीं पाता। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद टीबी के इन मरीजों तक सरकार के टीबी उन्मूलन अभियान की पहुंच ही नहीं हो पाई है।

क्‍या कहते हैं चिकित्‍सक

सरकार का टीबी अभियान क्यों बेअसर साबित हुआ इस बारे में आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने सेहतराग को बताया कि भारत में हम आज भी बलगम की जांच जैसे असंवेदनशील जांच उपकरणों पर बड़ी संख्या में भरोसा करते हैं। दूसरी बात, लंबे समय तक सरकारी टीबी अभियान ने निजी अस्पतालों में इलाज कराने वाले टीबी मरीजों को अभियान से दूर रखा। आज जरूरत इस बात की है कि हम टीबी के फैलाव के बारे में एक राष्ट्रव्यापी सर्वे करें क्योंकि लंबे समय से हमने देश में टीबी के फैलाव पर खास ध्यान नहीं दिया है। हमें यह भी समझना होगा कि मरीज चाहे देश के किसी भी कोने में हों उनतक सरकारी इलाज आसानी से पहुंच जाए तभी इससे निबटा जा सकता है।

पूरी तरह ठीक होने वाली बीमारी

गौरतलब है कि टीबी बैक्टीरिया से फैलने वाला संक्रामक रोग है जो कि इस बैक्टीरिया से संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से दूसरे तक पहुंच जाता है। कोई व्यक्ति टीबी का शिकार हो चुका है इसे दर्शाने वाला कोई खास और तय लक्षण तत्काल उभर आए ये जरूरी नहीं है। हालांकि यदि लक्षण उभरते हैं तो इसमें खांसी, वजन कम होना, रात में पसीना आना और बुखार शामिल है। वैसे टीबी पूरी तरह ठीक होने वाली और नियंत्रित होने वाली बीमारी है।

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